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बृहस्पति (गुरु) का यंत्र-मंत्रादि
गुरु-यंत्रम्
दिगबणसूर्य शिवनन्दसप्त षड्विश्वनागाः क्रमोंऽकोकोष्ठे। विलिख्य धार्य गुरुयंत्रामिरितं रुजाविनाशाय वदन्ति तद्बहुधाः ॥
पुराणोक्त गुरु जप मंत्र
ह्रीं देवानां च ऋषिणां च गुरुं कंचनसन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ॥
अर्थात् - जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं, कञ्चन (स्वर्ण) के समान जिनकी प्रभा है और जो बुद्धि के अखण्ड भण्डार तथा तीनों लोकों के प्रभु हैं उन बृहस्पति जी को मैं प्रणाम करता हूँ।
वेदोक्त गुरु मंत्र
ॐ बृहस्पते अस्त्यस्य गृत्समदो बृहस्पतिस्त्रिष्टुप, बृहस्पतिप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः।
ॐ बृहस्पति अतियद्य्र्यो अहद्दद्यिमद्विभाति क्रतुमञ्जनेषु। यद्दीद्यच्छवस ऽऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥-
: तन्त्रोक्त गुरु मंत्र
ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः।
अथवा
ॐ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः।
जपसंख्या - उन्नीस हजार, कलियुग में छिहत्तर हजार।
गुरुगाय मंत्र
ॐ आङिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि, तन्नो जीवः प्रचोदयात्।
गुरु - उत्तर दिशा, दीर्घ चतुर्भुज मंडल, अङ्गुल 6, सिन्धु देश, अंगिरा गोत्र, पीत वर्ण, धनु, मीन का स्वामी, वाहन, समिधा पीपल।
दानद्रव्य - पुखराज, सोना, काँसी, चने की दाल, खाँड़, घी, पीला फूल, पीला कपड़ा, हल्दी, पुस्तक, घोड़ा, पीला फल।
दान का समय - संध्या काल ।
धारण करने का रत्न - पुखराज नग। अभाव में जड़ी भारंगी (बमनेठी), पीले डोरे या कपड़े में दाहिनी भुजा या गले में धारण करें।