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[: पुराणोक्त चन्द्र जप मंत्र
दधि, शंख, तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभाव्यम्। नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भोजम् ॥
अर्थात् - दही, शंख, अथवा हिम के समान जिनकी दीप्ति है और उत्पत्ति क्षीरसागर (समुद्र) से है, जो शिव (शंकर भगवान) के मुकुट पर अलंकार की तरह विराजमान रहते हैं, मैं उन चन्द्रदेव को प्रणाम करता हूँ।
वैदिक चन्द्र मन्त्र
ॐ आप्याय गौतमः सोमोगाय सोमप्रीत्यरथ जपे विनियोगः। ॐ आप्यवस्व सहितु ते विश्वतः सोम वृषभ्यम्। भव वाजस्य संगथे ॥
तंत्रोक्त मंत्र
श्रीं श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः।
ॐ ऐं ह्रीं सोमाय नमः।
जपसंख्या - ग्यारह हजार, कलियुग में चौवालीस हजार।
सोम गायत्री मन्त्र
ॐ अमृतलाङ्गाय विद्महे कलारूपाय, धीमहि तन्नः सोमः प्रचोदयात्।
चन्द्र - अग्निकोण, चतुर्स्त्र मण्डल, अंगुल चार, यमुनातत्विद्या देश, अतिगोत्र, श्वेत वर्ण, कर्क राशि का स्वामी, वाहन हरिण, समिधा पलाश।
दान द्रव्य - मोती, सोना, चाँदी, चावल, मिश्री, दही, सफेद कपड़ा, सफेद फूल, शंख, कपूर, सफेद बैल, सफेद चन्दन। दान का समय संध्या काल। (गोधूलि वेला)
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धारण करने का रत्न-मोती या चन्द्रकान्त मणि (मूनस्टोन), अभाव में सीप अत्यधिक प्रभावशाली। बड़ी-खिरनी वृक्ष की जड़ को, सफेद कपड़े में सीकर गले अथवा भुजा में धारण करें।