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: नवग्रहों के यन्त्रादिकों की जानकारी निम्न प्रकार से हैं-
1. रवि (सूर्य) यंत्र मंत्रा
रवि-यन्त्रम्
रसेंदुनागा नागबाणरामा युगमानववेद नवकोष्ठमध्ये। विलिख्य धार्ये गदाशनाय वदन्ति गर्गादिमहामुनिद्राः ॥
: पुराणोक्त रवि मंत्र
ह्रीं जपाकुसुम संकाशं कश्यपयं महद्युतिम्। तमोऽरिं सर्व पघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥
अर्थात् - जपा (अढौल) के फूल के समान जिन सूर्य भगवान की कान्ति है और जो 'कश्यप' से उत्पन्न हुए हैं, अन्धकार जिनका शत्रु है, जो सभी प्रकार के पापों को नष्ट करते हैं, उन सूर्य-भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ।
वैदिक रवि मन्त्र
ॐ आकृष्टोनेत्यस्य मन्त्रस्य हिरण्यस्तुः सविता। त्रिष्टुप सूर्य प्रीत्यर्थ जपे विनियोगः। ॐ श्रीकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतंमर्त्य च। हिरण्येन सविसार तेनादेवोयति भुवनानिपश्यन् ॥
तंत्रोक्त रवि मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।
जपसंख्या सात हजार। कलियुग में अट्ठाइस हजार।
सूर्य गायत्री मन्त्र
ॐ सप्त तुरंगाय विद्यामहे सहस्त्राय किरणाय धीमहि तन्नोरविः प्रचोदयात्।
अथवा
ॐ आदित्याय विद्महे मबाहाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
सूर्य - मध्य भाग, वर्तुल मण्डल, अंगुल बारह, कलिंग देश, कश्यप गोत्र, रक्तवर्ण, सिंह राशि का स्वामी, वाहन सप्ताश्व, समिधा मदार।
दानद्रव्य - माणिक्य (माणिक) सोना, ताँबा, गेहूँ, घी, गुड़, लाल कपड़ा, लाल फूल, केशर, मूँगा, लाल गऊ, लाल चन्दन, दान का समय अरुणोदय (सूर्योदय काल)।
धारण करने का रत्न माणिक्य (माणिक रत्न) ।
यदि रत्न धारण करने में असमर्थ हैं तो जड़ी बिल्व पेड़ (बेल) की जड़ को गले अथवा भुजा में धारण करना चाहिये।