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इस जन्म तथा उस जन्म के असत् कर्मों के फलस्वरूप नौ ग्रहों की अशुभ दृष्टि से मानव को नाना प्रकार के अनिष्टों की उपलब्धि होती है, अथवा यों मानिये कि ज्यातिष शास्त्र के अनुसार आकाश मण्डल में स्थित ग्रह पिण्डों के प्रभाव से उत्पन्न उत्पात दो प्रकार के होते हैं।
१. सम्पूर्ण राष्ट्र पर प्रभाव डालने वाले ग्रह, उत्पात ग्रह, युद्ध, भूकम्प, तूफान, रक्त वर्षा, केतूदय आदि । २. व्यक्ति विशेष पर होने वाले नाना प्रकार के ग्रह युतियों द्वारा परिलक्षित होते हैं, जिनका विवेचन ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन ग्रन्थों में किया गया है।
तंत्र शास्त्र के नियम यंत्र मंत्रों का विशिष्ट महत्व है। इस विषय पर कई स्वतन्त्र शास्त्र भी निर्मित किये गये हैं, मगर तंत्र-मन्त्र गुरु परम्परा वैश्याय के कारण गुह्य हैं, इसलिए सर्वसाधारण बहुत से विषय हैं
[: हसे अपरिचित रहते हैं। हमने परम्परा प्राप्त ग्रह दोष निवारणार्थ यन्त्रों आदि का विशेष अनुभव किया है, जिन्हें जन साधारण के लिये बहुत ही सरल रीति से यहाँ उधृत कर रहे हैं। इन यन्त्रों को प्रारम्भ में सिद्ध करना पड़ता है, तदुपरान्त ही कोई व्यक्ति इन्हें किसी दूसरे को बनाकर दे सकता है। इन्हें सिद्ध करने की विधि संक्षेप में आगे लिख रहा हूँ।
प्रयोग विधि - प्रारम्भ में जिस ग्रह मन्त्रादि को सिद्ध करना हो उस ग्रह के देवता के वार (दिन)
व्रतोपवास करें और विधिवत आठ हजार या बत्तीस हजार (ग्रह सम्बन्धित) मन्त्रों का जप-हवनादि प्रतिदिन दो हजार के हिसाब से करें, फिर उस ग्रह की काल होरा में यन्त्र निर्माण कर उसका पूजनादि करें, इसके पश्चात अभिलाषित व्यक्ति को उपवास एवं यन्त्र पूजन कराकर यन्त्र धारण करना चाहिये और ग्रहण, होली, दीपावली, विजयादशमी (दशहरा), रामनवमी, अमावस्या, वसंत पंचमी, आदि शुभ ग्रह नक्षत्रों में यन्त्रों का पूजन करना चाहिये व जिस ग्रह का यन्त्र हो उसके वार (दिन) में प्रातः पूजन धूप-दीप, आदि करते रहना चाहिये तो अति उत्तम होगा।
विशेष ध्यान रखें -
१. यन्त्रों को भोजपत्र पर अष्टगन्ध, केशर, अथवा रक्त चन्दन (लाल चन्दन) या केशर मिश्रित सफेद चन्दन आदि से अनार या तुलसी की कलम (लेखनी) अथवा सोने (स्वर्ण) की निब (कलम) से ही लिखना चाहिये।
२. यन्त्र स्वर्ण अथवा रजत (चाँदी) के पत्र पर भी अंकित हो सकते हैं।
३. यन्त्रों को ताँबा-चाँदी अथवा सोने के ताबीज (खोल) में भरकर धारण करना चाहिये।
४. इन यन्त्रों का निर्माण यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मण अथवा गुरुधारक व्यक्ति ही कर सकते हैं।
५. सूर्य यन्त्र, चन्द्र, मंगल, गुरु (बृहस्पति) शुक्र इन यन्त्रों को लाल डोरे में, बुध यन्त्र को हरे डोरे में, शनि-केतु-राहु के यन्त्रों को काले रंग में डोरे में पिरोकर दाहिनी भुजा अथवा गले में धारण करना चाहिये।
सफेद चन्दन तथा लाल चन्दन इन सबको पीस लें और घोलकर रोशनाई बना लें। हाथी मद के अभाव में अष्टगन्ध बनाने की विधि - असली केशर, कस्तूरी, कपूर, काला अगर, गोरोचन, हाथी का मद, पिसी हल्दी लेनी चाहिये।